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उ॒भया॑सो जातवेदः स्याम ते स्तो॒तारो॑ अग्ने सू॒रय॑श्च॒ शर्म॑णि। वस्वो॑ रा॒यः पु॑रुश्च॒न्द्रस्य॒ भूय॑सः प्र॒जाव॑तः स्वप॒त्यस्य॑ शग्धि नः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ubhayāso jātavedaḥ syāma te stotāro agne sūrayaś ca śarmaṇi | vasvo rāyaḥ puruścandrasya bhūyasaḥ prajāvataḥ svapatyasya śagdhi naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒भया॑सः। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। स्या॒म॒। ते॒। स्तो॒तारः॑। अ॒ग्ने॒। सू॒रयः॑। च॒। शर्म॑णि। वस्वो॑। रा॒यः। पु॒रु॒ऽच॒न्द्रस्य॑। भूय॑सः। प्र॒जाऽव॑तः। सुऽअ॒प॒त्यस्य॑। श॒ग्धि॒। नः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:2» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:7 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) विज्ञान को प्राप्त हुए (अग्ने) परम विद्वान् ! और उपदेशक जन ! जिस कारण आप (नः) हमारे (स्वपत्यस्य) सुन्दर सन्तानयुक्त (प्रजावतः) प्रजावान् (भूयसः) बहुत (वस्वः) निवास का हेतु (पुरुश्चन्द्रस्य) बहुत सुवर्णादि धनयुक्त (रायः) धन के दान करने को (शग्धि) समर्थ हो इससे (ते) आपके (शर्मणि) घर में (स्तोतारः) प्रशंसक (सूरयः) और विद्वान् जन (उभयासः) दोनों प्रकार के हम लोग उन्नति को प्राप्त (स्याम) होवें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो धर्म से धनादि पदार्थों का सञ्चय करते हैं, उनका अतुल धन उत्तम प्रजा और सुशील अपत्य होते हैं। जो पाण्डित्य और प्रगल्भता को प्राप्त होकर अध्यापक और उपदेशक होते हैं, वे दुःख को नहीं देखते हैं ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जातवेदोऽग्ने यतस्त्वं नोऽस्माकं स्वपत्यस्य प्रजावतो भूयसो वस्वः पुरुश्चन्द्रस्य रायो दानं कर्त्तुं शग्धि तस्मात्ते तव शर्मणि स्तोतारः सूरयश्चोभयासो वयमुन्नताः स्याम ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उभयासः) उभये (जातवेदः) जातविज्ञान (स्याम) (ते) तव (स्तोतारः) (अग्ने) परमविद्वन्नुपदेशक (सूरयः) विद्वांसः (शर्मणि) गृहे (वस्वः) वासहेतोः (रायः) धनस्य (पुरुश्चन्द्रस्य) पुष्कलसुवर्णादियुक्तस्य (भूयसः) (प्रजावतः) उत्तमप्रजायुक्तस्य (स्वपत्यस्य) शोभनापत्यसहितस्य (शग्धि) दातुं शक्नुहि। अत्र वाच्छन्दसीति विकरणलुक् (नः) अस्माकम् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ये धर्मेण धनादीन् पदार्थान् सँश्चिन्वन्ति तेषामतुलं धनमुत्तमाः प्रजाः सुशीलान्यपत्यानि च भवन्ति ये पाण्डित्यं प्रगल्भतां च प्राप्याऽध्यापका उपदेशकाश्च जायन्ते ते दुःखं न पश्यन्ति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे धर्माने धन इत्यादी पदार्थांचा संचय करतात. त्यांचे धन अमाप, उत्तम प्रजा व सुशील अपत्ये असतात. ज्यांच्याजवळ पांडित्य व प्रगल्भता असते ते अध्यापक व उपदेशक बनतात आणि दुःखी होत नाहीत. ॥ १२ ॥